16 जुलाई 2014

लिहाफ

                                                                     




उलझ गई है जिंदगी,
जज्बातों के मकड़जाल में
बुनती हूँ लिहाफ सब ढांकने को
पर चुपके से कोई रेशा निकल ,
बेपर्दा कर जाता है मेरे एहसास को
महसूस होता है शून्य सा सबकुछ पर
शून्य अंत नहीं,संघर्ष का आगाज है
मंजिल तक पहुंचने का पहला पायदान है
काबू पाना है अपने जज्बातों पर
खोलकर अब दुविधा की डोर,
हर उलझन को सुलझाना है
बहुत गँवा लिया वक्त,
चलना है अब वक्त के साथ-साथ
हर एक धागे को तरतीब से बुनना है
दृढ़ निश्चय की मजबूत गाँठ से
हर रेशे को बाॅधे रखना है
लिहाफ से कुछ नहीं छिपाना है अब
उसको तो खूबसूरती से सभांले हुए
हर पल आगे बढ़ते जाना है
अब रुकना नहीं है
मंजिल को अपनी पाना है
लड़खड़ाये जब कदम ,
मैला न हो लिहाफ
देख संभल जाना है

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