3 मई 2015

प्रकृति का तांडव




आह ! ये कैसा प्रकृति ने रचाया तांडव है.................... 

बेबस आँखों में जिंदगी की  चाह  लिए सब बदहवास हैं

प्रकृति के  तांडव ने अमीर -गरीब  सबको कर दिया समान हैं

हर तरफ त्राहि माम-त्राहि माम है, जिधर देखो उधर चीख पुकार है

बिछड़ गए  हैं सारे रिश्ते-नाते, मिलकर रो रहें हैं आज सब बेगाने

सुकून के लिए बनाया था , जिन्होंने अपना एक आशियाना

ढह  गए  वे सब ,आज राहें  हीं बन गई हैं  सभी का ठिकाना

बिखर गया तिनका-तिनका , रह गया बस खँडहर और मलबा 

भूख -प्यास से तड़प रहे , दर्द इतना कि मुख हो गए निःशब्द हैं 

सब कुछ हो गया  ख़त्म है ,जीने की आस भी अव्यक्त है 

आह ! ये कैसा प्रकृति ने रचाया तांडव है.…………  






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें