ख्वाहिशें हैं मंजिल को पाने की
निगाहें दौड़तीं हैं
चहुँ दिशाओं में
ठिठक जाते हैं वहीँ पाँव मेरे
अंदेशा होता है मंजिल का
जिस भी मोड़ पर
लगता है मंजिल का पता हो जिसको
टिक जाती है नज़र
हर उस शख्स पर
ज्यादा की दरकार नहीं है
एक इशारा ही काफी है
उस राह की तरफ
फिर मायने नहीं रखती हैं
मंजिल की दूरियां
या पथरीले रास्ते
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