6 नवंबर 2015

माटी का दीया


कुम्हार  के पैरों तले रौंदा गया 
फिर हाथों ने तरतीब से गढ़ा
चाक पर कई मोड़ से गुजरकर 
नाम उसको मिला इक दीया 


बंद गली की किसी 
  सीलनभरी  चौखट पर 
     उम्मीदों  का 
 टिमटिमाता दीया 
आलिशान महलों में 
तुलसी के चौबारे पर 
खुशियों का चमकता दीया 

नयी दुल्हन के हाथों से जला 
शगुन का दीया 
मंदिर के प्रांगण में अध्यात्म का 
प्रज्जवलित दीया 
तल में अँधेरा लिए 
रोशनी की 
जगमग फैलाता दीया 
माटी में मिल जाता 
जलने के बाद 
फिर माटी का दीया 

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