कुम्हार के पैरों तले रौंदा गया
फिर हाथों ने तरतीब से गढ़ा
चाक पर कई मोड़ से गुजरकर
नाम उसको मिला इक दीया
फिर हाथों ने तरतीब से गढ़ा
चाक पर कई मोड़ से गुजरकर
नाम उसको मिला इक दीया
बंद गली की किसी
सीलनभरी चौखट पर
उम्मीदों का
टिमटिमाता दीया
आलिशान महलों में
तुलसी के चौबारे पर
खुशियों का चमकता दीया
नयी दुल्हन के हाथों से जला
शगुन का दीया
मंदिर के प्रांगण में अध्यात्म का
प्रज्जवलित दीया
तल में अँधेरा लिए
रोशनी की
जगमग फैलाता दीया
माटी में मिल जाता
जलने के बाद
फिर माटी का दीया
सुन्दर सृजन
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