पेड़ो के झुरमुट से छनकर , आती हुई सूरज की किरणें
मेरे आँगन में लाती हैं , जाड़े के धूप की लकीरें
देख उनको महसूस होता है , अंतर्मन की गहराइयों में
जिंदगी भी तो है , ऐसी ही जाड़े के कच्ची धूप की किरिचें
वक्त लगता है , दुःख की चादरें सूखने में
पर धूप दिखाने लगते है , सुख की रजाइयों में
रिश्तों सा ठंडापन रह जाता है , सूखे कपड़ों में
पर आस की गर्माहट का एहसास होता है , बदन में
धुली हुई छत गीली रह जाती है , अरमानों के आंसुओं में
पर तिपाइयाँ रख मुस्कुराती बरनियों को दिखाते हैं , धूप में
सुरसुरी सी ये हवाएं , स्वार्थ सा रूखापन लाती है , जिस्म में
पर पिघल जाता है मन गरी के तेल सा , धूप की ज़रा सी तपिश में
हर एक का अपना – अपना अनुभव होता है , जिंदगी में
पर सुकून मिलता है सभी को , जाड़े की कच्ची धूप में
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