21 दिसंबर 2015

जाड़े की कच्ची धूप



पेड़ो के झुरमुट से छनकर , आती हुई सूरज की  किरणें

मेरे आँगन में लाती हैं , जाड़े के धूप की लकीरें


देख उनको महसूस होता है , अंतर्मन की गहराइयों में

जिंदगी भी तो है , ऐसी ही जाड़े के कच्ची धूप की किरिचें


वक्त लगता है , दुःख की चादरें सूखने  में

पर धूप दिखाने लगते है , सुख की रजाइयों में


रिश्तों सा ठंडापन रह जाता है , सूखे कपड़ों में

पर आस की गर्माहट का एहसास होता है , बदन में


धुली हुई छत गीली रह जाती है , अरमानों के आंसुओं में

पर तिपाइयाँ रख मुस्कुराती बरनियों को दिखाते हैं , धूप में


सुरसुरी सी ये हवाएं , स्वार्थ सा रूखापन लाती है , जिस्म में

पर पिघल जाता है मन गरी के तेल सा , धूप की ज़रा सी तपिश में


हर एक का अपना – अपना अनुभव होता है , जिंदगी में

पर सुकून मिलता है सभी को , जाड़े की कच्ची धूप में







 







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